Monday, 11 April 2016

YADUVANSH SHIROMANI "BHANJI DAL JADEJA"


This is about a great warrior from Nawangar (currently known as Jamnagar). Bhanji Dal Jadeja one of brave characters from the history which lot people might not be aware about. But i assure you that after reading might of his bravery everybody will respect his valor.
Bhanji Dal was chief of Nawanagar state Army. In vikram sawant 1633, Delhi emperor Akbar attacked junagadh. Then Nawaab of Junagadh requested Jam Sataji -I of Nawanagar state to xtend help of his army.
Jam Sataji sent a huge army of 30000 soldiers for help of Junagadh against Akbar under the leadership of Bhanji Dal Jadeja. Nawaab of Junagadh was frightened and he closed the doors of Junagadh fort and requested Bhanji Dal Jadeja to return back as he thought he would not be able to defeat Akbar. But Bhanji Dal refused  and said, ” Once a kshatriya goes to war, he cant go back, either he loses his life or he achieves victory”. He told his army today either Akbar’s arm surrenders or We will fight!.
On midnight, Bhanji Dal and his troops attacked the army of Akbar( lead by Mirzakhan) with great bravery and courage. Thousands of Akbar’s soldiers were killed in the battle. Next day the Akbar’s troops ran away. Bhanji Dal Jadeja along with great warriors of Nawanagar army including Jesaji Vazir, Togaji Sodha and Meramanji Hala Jadeja won the great battle of Junagadh.
Bhanji Dal seized 52 elephants 3530 horses and Palkies of Akbar’s army as well as the Doors of Junagadh fort were also removed. This was a part of punishment to Junagadh nawaab for his cowardness. These doors are still standing at Khambhalia Gate of Jamnagar.
Nawaab of Junagadh felt sorry and asked for forgiveness.
1) Village of chur with 12 other villages.
2)Village of Bhar with 12 other villages.
3)Jam- Jodhpur Tehsil were gifted to Jam Sataji -I By Nawaab of Junagadh. Again in battle of “TAMACHAN” Akbar was defeated b Bhanji Dal Jadeja.
So in this way I pay tribute to the Hero from the past which was not popularly remembered as much as he should. Hats of the bravery in the battle field and His respect for Kshatra dharma.
                   हिन्दी रूपान्तरण
(नोट:-अंग्रेजी भाषा  के हिंदी रूपांतरण से अलग शब्दों में लिखित भानजी दल जडेजा की कहानी)
आज हम एक ऐसे वीर यदुवंशी राजपूतों के योद्धा भान जी दल जाडेजा के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपने राज्य पर बुरी नजर रखनेवाले मुगलों को गाजर मूली की तरह काटा | इतना ही नहीं तो उनका नेतृत्व करने वाले अकबर को भागने पर मजबूर कर दिया ! लेकिन दुर्भाग्य देश का कि नई पीढी को इस वीर योद्धा के बारे में पढाया और सुनाया ही नही गया ! भान जी दल जाडेजा ने अकबर को बुरी तरह परास्त किया और उसे भागने पर मजबूर कर दिया और साथ ही साथ उसके 52 हाथी, 3530 घोड़े पालकिया आदि अपने कब्जे में ले लिए !
1576 ईस्वी में मेवाड़,गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी मुगलो से लोहा ले रहा था | गुजरात में स्वय अकबर और उसका सेनापति कमान संभाले थे ! अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहां के नवाब ने पडोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी ! क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भान जी दल जाडेजा !
सभी योद्धा देवी दर्शन के पश्चात् तलवार शस्त्र पूजा कर जूनागढ़ की सहायता को निकले, पर माँ भवानी को कुछ और ही मंजूर था ! उस दिन जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की विशाल सेना के सामने लड़ने से इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया ! नवानगर के सेनापति ने वीर भान जी दल जाडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा ! इस पर भान जी और उनके वीर योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए ! भानजी जडेजा ने सीधे सीधे जूनागढ़ नवाब को  कहा “क्षत्रिय युद्ध के लिए निकला है तो या तो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त करेगा” !
वहां सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा ही, इसलिए सभी वीरो ने फैसला किया कि वे बिना युद्ध किये नही लौटेंगे ! अकबर की सेना लाखो में थी ! उन्होंने मजेवाड़ी गाँव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था ! भान जी जडेजा ने मुगलो के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया !
सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट देव का स्मरण कर युद्ध स्थल की ओर निकल पड़े ! आधी रात हुई और युद्ध आरम्भ हुआ ! रात के अँधेरे में हजारो मुगलो को काटा गया ! सुबह तक युद्ध चला, मुगलो का नेतृत्व कर रहा मिर्ज़ा खान और मुग़ल सेना अपना सामान छोड़ भाग खड़ी हुयी !
हालांकि अकबर इस युद्धस्थल से कुछ ही दूर था, किन्तु उसने भी स्थिति की गंभीरता को भांपकर पैर पीछे खींचने में ही भलाई समझी | वह भी सुबह होते ही अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़कर भाग खड़ा हुआ !
नवानगर की सेना ने मुगलो का 20 कोस तक पीछा किया ! जो हाथ आये वो मारे गए ! अंत में भान जी दल जाडेजा ने मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया ! उस के बाद यह काठियावाड़ी फ़ौज नवाब को उसकी कायरता की सजा देने के लिए सीधी जूनागढ़ गयी ! जूनागढ़ किले के दरवाजे उखाड दिए गए ! ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते है और आज भी वहां लगे हुए है !
बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू ,भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला) नवानगर रियासत को दिए !
कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर 1639 में आया किन्तु इस बार भी उसे "तामाचान की लड़ाई" में फिर हार का मुँह देखना पड़ा ! इस युद्ध का वर्णन गुजरात के अनेक इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में किया है, जिनमें मुख्य हैं - नर पटाधर नीपजे, सौराष्ट्र नु इतिहास के लेखक शम्भूप्रसाद देसाई, Bombay Gezzetarium Published by Govt of Bombay, विभा विलास, यदुवन्स प्रकाश की मवदान जी रतनु आदि में इस शौर्य गाथा का वर्णन है !
भान जी दल जाडेजा ने इसके बाद सम्वत 1648 में भूचर मोरी में मुगलों के विरुद्ध अपना अंतिम युद्ध लड़ा | इस युद्ध में अपना पराक्रम दिखाते हुए वे शहीद हुए , सच में भान जी दल जाडेजा का नाम इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है  !
Published by:- "Yaduvanshi Kunwar Abhay Pratap Singh Jadon"

2 comments:

  1. Kya bakvas bta rha hai bhai akbar 1572 me aaya tha gujrat mirja husain se ladne or use pitt ke gya tha
    Apne english me date 1633 kar rakhi hai or hindi me 1576 use shi kro or apni knowledge bhi 🤣

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  2. Aase fake batte fehla ke apni hi bejjati krate ho tum sb aasi koi ldayi nhi hui jisme akbar bhaga or pura gujrat uske under aagya tha 1571-73 tk 1576 me mevad gya tha jitne vo October me or Rana prtap ko bhagana pada tha jb vo 70% mevad pr kabja karke gya to Rana se dubara kabja kr liya mevad pr 1576 me to vo gujrat aaya hi nhi
    1572 me aaya tha or jitt ke gya hai sena lakho ki nhi thi 1500- 2500 thi 50 din ka rasta 9 din me cover karke aaya tha mirja husain ko harane vo 7000 thay fir bhi jitt gye aase khani soch samajh ke dala kro tum jase ullu hi phad ke bkvass krte hai fir

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