Jaisalmer State
Maharaj Bhim Singh- Jaisalmer
Maharaval Shalivahan-1891 Jaisalmer
जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों का इतिहास, राज्य का राज चिन्ह ,ध्वज ,मेघाडम्बर छत्र तथा कुलदेवी सांगियाजी
जैसलमेर का राजवंश राजपूतों की चंद्रवंश की यदुवंशी/पौराणिक यादव / जादौन खांप की भाटी शाखा में है और अपने पूर्वज राजा भाटी के नाम से "भाटी "या भाटी यादव"कहलाता है।इनके मूल पुरुष पंजाब से चल कर वि0 सं 0 800 के करीब राजपूताने में अधिकार किया था।इन भाटियों ने समय -समय पर उत्तर से भारत पर आक्रमण करने वालों का सब से प्रथम मुकाबला किया था।इसी से इनको "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी "अर्थात उत्तर भारत के द्वार रक्षक भाटी "कहते है।यहां के नरेश पंजाब से राजपूताने में आने के कारण अपने को "पश्चिम के बादशाह "भी कहते है।यादव वंश महाराजा ययाति के पुत्र यदु के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।इन यादवों का शासन भारतवर्ष के एक बड़े भाग पर रहा है।भगवान् श्री कृष्ण के बाद उनके कुछ वंशधर हिन्दुकुश के उत्तर में व् सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थेऔर वह स्थान"यदु की डाँग" कहलाया ।यदु की डाँग से जबुलिस्तान ,गजनी ,सम्बलपुर होते हुऐ सिंध के रेगिस्तान में आये और वहां से लंघा ,जामडा और मोहिल कौमो को निकाल कर तनौट ,देरावल ,लोद्र्वा और जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाई ।जैसलमेर के इस राजवंश का इतिहास यथाक्रम महाराजा रज से प्रारम्भ होता है जो वि0 सं0 600 के आस -पास हुआ था।इनका पुत्र गज था और उसका राज्य पेशावर (पुरुषपुर )के आस -पास था।इसका नाम गजपति भी था।इसने गजनी या गजनीपुर नाम का नगर बसाया था।इसी को अफगानिस्तान का गजनी शहर कहते है।गंधार देश जिसको अब कंधार कहते है,प्राचीन समय में चंद्रवंशी क्षत्रियों के अधिकार में था और चीनी यात्री हुएनसांग सातवीं शताव्दी में उस तरफ से होकर ही भारत में आया था।उसने उस समय हिरात से कंधार तक हिन्दू राजा व् प्रजा का होना लिखा है।खुराशान् के बादशाह ने महाराज गज पर चढाई की इस युद्ध में खुराशानी बादशाह और महाराज गजदोनों हीकाम आये और राजधानी गजनी पर मलेच्छों (मुसलमानों )का अधिकार होगया ।जब गाजीपुर मुगलों के हाथ चला गया तोमहाराज गज के पुत्र शालिवाहन पंजाब के दक्षिण की ओर अपने साथिओं के साथ बढे और वर्तमान लाहोर के पास शालवाहनपुर नगर बसाया।यह नगर वही है जिसे अब शियालकोट कहते है।धीरे -धीरे ये पंजाब के स्वामी होगये।शालिवाहन के बाद उसका बड़ा पुत्र बलंद शालभानपुर(शियालकोट )की गद्दी पर बैठा।इसके समय में तुर्कों का जोर बहुत बढ़ गया थाऔर उन्होंने गजनी पुर बापिस ले लिया।इससे बलंद के पुत्रों के अधिकार मेंकेवल सिंधु नदी का पश्चिमी भाग ही रहा।बलन्द के 6 पुत्रों में ज्येष्ठ भाटी थे।ये बड़े प्रतापी योद्धा थे।इन्होंने कई लड़ाईयां लड़ीं थी।महाराज भाटी जी के समय तक इस वंश का नाम "यादव वंश "ही था।परन्तु इस प्रतापी राजा के पीछे उनके वंशज "भाटी"नाम से प्रसिद्ध हुए ।इन्होंने अपने नाम से भट्टिक संवत् भी चलाया था जो पंजाब में अर्से तक चलता रहा।महाराज भाटी जी का समय वि0 सं0 680 (ई0 सन् 623 )के करीब होता है जब वे गद्दी नशीन हुए होंगे।महाराज भाटी जी ने अपने नाम पर पंजाब में भटनेर नाम का प्रसिद्ध गढ़ व् नगर बसाया जो बहुत समय तक भाटियों के अधिकार में रहा और फिर भाटी मुसलमानों के हाथ लगा।बाद में सन् 1805में मुसलमान जाब्तखां भट्टी से वह बीकानेर के राठौड़ों के राज्य में सम्मिलित हो गया।अब उसका नाम "हनुमानगढ़ "है।
इस भाटी राजवंश का इतिहास डावांडोल रहा है।इन्होंने भिन्न -भिन्न समयों में भिन्न -भिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व जमाया था।ये अपनी 9 राजधानीयो में से जैसलमेर को अंतिम राजधानी बतलाते है और 12जुलाई सन् 1155 को इसका स्थापित होना मानते है।इस विषय का एक पद्य भी है
मथुरा काशी प्राग बड़,गजनी अरु भटनेर।
दिगम् दिरावल लोद्रवो,नमो जैसलमेर।।
इस भाटी राजवंश का इतिहास डावांडोल रहा है।इन्होंने भिन्न -भिन्न समयों में भिन्न -भिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व जमाया था।ये अपनी 9 राजधानीयो में से जैसलमेर को अंतिम राजधानी बतलाते है और 12जुलाई सन् 1155 को इसका स्थापित होना मानते है।इस विषय का एक पद्य भी है
मथुरा काशी प्राग बड़,गजनी अरु भटनेर।
दिगम् दिरावल लोद्रवो,नमो जैसलमेर।।
जैसलमेर को महारावल जैसलदेव ने अपनीराजधानी बनाया था ।वे सिर्फ 12 वर्ष जीवित रहे और फिर संसार से चल बसे ।इसके बाद जैसलमेर के राज्य में काफी उतार -चढाव आये लेकिन अंत तक भाटी राजपुतसंघर्ष रत रहे और पुनः जैसलमेर पर उनका ही आधपट्टिय रहा।संक्षिप्त में भाटियों का वंश -चंद्र ,कुल -यदु ,कुलदेवता -लक्ष्मीनाथ ,कुलदेवी -सांगियाजी ,देवी -भाद्रयाजी ,इष्ट देव -श्री कृष्ण ,गोत्र -अत्रि ,
दुर्ग-जैसलमेर ,पूगल ,बीकमपुर ,बरसलपुर ,मारोठ ,केहरोड ,देरावर ,बींझनोत ,लुद्रवा ,भटनेर ,मुमनबाहन ,दुनियापुर ,भटिंडा ।
दुर्ग-जैसलमेर ,पूगल ,बीकमपुर ,बरसलपुर ,मारोठ ,केहरोड ,देरावर ,बींझनोत ,लुद्रवा ,भटनेर ,मुमनबाहन ,दुनियापुर ,भटिंडा ।
अधिकांश इतिहासकारों ने करौली के यादवों और जैसलमेर के भाटियों के लिए भी जादौन या जादव 'जदुवंशी ,शब्दों का प्रयोग किया है ।इन दोनों को ही वज्रनाभ जी के वंशज माना है|
मेघाडम्बर छत्र का इतिहास
मेघाडम्बर छत्र का इतिहास ---रुक्मणी जी के स्वयंवर में जब भगवान् श्री कृष्ण का पद के अनुरूप राज्योचित शिष्टाचार से विदर्भ प्रदेश के कुण्डनपुर के राजा भीष्मक केद्वारा स्वागत नहीं किये जाने के विरोध में श्री कृष्ण जी ने अपना डेरा क्रथकैथ उद्ध्यान में रखा ।राजा भीष्मक द्वारा श्री कृष्ण जी की उदासीन अगवानी से देवराज इंद्र भी प्रसन्न नहीं थे ।उन्होंने श्री कृष्ण जी को सांत्वंना देने के लिए स्वर्ग से स्वयं का नृपयोग्य तामझाम क्रथ कैथ उद्यान भेजा ,जिसमें शासकीय "मेघाडम्बर छत्र " भी था ।यह सब जानकर राजा भीष्मक को अपनी भूल का ध्यान आया ,संकोच से भरे राजा ने क्रथ कैथ उद्यान में ही श्री कृष्ण के लिए सम्राटों के पद के अनुरूप भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया ।इस दरबार में उन्हें नजरें भेंट की गई।सभी आगंतुकों ने स्वयं उपस्थित होकर भगवान् श्री कृष्ण को राजकीय सम्मान से उपहार दिए और उनके प्रति श्रद्धा दर्शयी ।रुक्मणी जी ने स्वयंबर में श्री कृष्ण जी को वर चुना .बाकी सब राजा निराश होकर अपने अपने राज्य को चले गये ।स्वयंवर की समाप्ति पर देवराज इन्द्र का सारा तामझाम स्वर्ग लौटा दिया गया ,किन्तु श्री कृष्ण जी ने शासकीय "मेघाडम्बर छत्र"अपने लिए पीछे रोक लियाऔर इसे अपना राजकीय अधिकार -चिन्ह बनाकर घोषणा की कि जब तक "मेघाडम्बर छत्र "यदुवंशियों के साथ रहेगा _वह धरती पर राज करते रहेंगे ।यह छत्र अब भी भाटियों के जैशलमेर राजघराने में है और भाटी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाटियों के उस क्षेत्र में राज कर रहे है ।यदुवंशियों का विरुद्र "छत्राला यदुवंशी "होने से सभी शासकीय जातियों में यह वरिष्ठतम शासक है ।
भाटियों की कुल देवी सांगियाजी का इतिहास
भाटियों की कुल देवी सांगियाजी का इतिहास ----महाभारत युद्ध के समय तक सोमवंशी /चंद्रवंशी यदु जाति की कुलदेवी भगवती कालिका देवी थीं ,जिन्हें साहणों देवी भी कहा जाता था ;बाद में वह "सांगियाजी "कहलायी ।श्री कृष्ण के प्रति मगध नरेश जरासंध के अपमानकारी वर्ताव को देवी कालिका सहन नहीं कर सकी ,इस लिए श्री कृष्ण की सहमति से क्रुद्ध देवी ने भरे दरबार में राजा जरासंध से झपटा मारकर उसका दिव्य साँग (भाला )छीन लिया ।यह आवश्यक था ,क्यों कि जरासंध को वरदान था कि जब तक साँग उनके पास रहेगा वह अभेद्य रहेंगे।इस छीना -झपटी में साँग का अग्रभाग कुछ मुड़ गया इसी लिए भाटियों के राजचिन्ह में भाले की नोक मुड़ी हुई दिखाई गई है ।श्री कृष्ण को देवी ने साँग भेंट किया और उसके बाद भीम ने साँग रहित राजाजरासंध का वध कर दिया।चूँकि कुल देवी कालिका ने राजा जरासंध से "साँग"छीन कर लिया था इस लिए इन्हें "साँग –ग्रहयानि "या "साँगिया जी कहा जाता है।इस घटना के बाद यदुवंशियों की कुलदेवी को सांगियाजी के नाम से संबोधित किया जाने लगा ।
जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों का राजचिन्ह व् ध्वज (Coat of Arms )
जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूतों का राजचिन्ह व् ध्वज (Coat of Arms )
जैसलमेर राज्य के यदुवंशी /पौराणिक यादव राजपूतों के राजचिन्ह में एक ढाल है ,जिस पर खंजन चिड़िया (सुगन चिडी ,पलंब )बैठी है।ढाल के दोनों तरफ एक _एक हिरन चित्रित है।ढाल के बीच में किले की एक बुर्ज है और एक बलिष्ठ पुरुष की नंगी भुजा में एक तरफ से टूटा हुआ भाला आक्रमण करते हुये दिखाया गया है।यह राज्य चिन्ह किसी संन्यासी का बताया हुआ कहा जाता है और यह दरबार के झंडे पर ही लगा रहता है।यहां का शाही झंडा भगवा रंग का है क्यों कि कनफते योगी रतन नाथ ,रावल देवराज का गुरु था और उसने अपने शिष्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाया ।कुछ इतिहासकार कहते है कि यह राजचिन्ह जोगी रतननाथ द्वारा प्रदान किया गया था और दरबार के भगवे रंग के झंडे पर लगा रहता है।
ढाल का रंग नारंगी है,लेकिन उस पर किले की बुर्ज जो काले रंग की है वे जैसलमेर किले को सूचित करती है और इस राज्य चिन्ह पर भाले के निशान् से इस वंश की कुल देवी स्वांगीयाजी सूचित होती है।भाले का निशांन ,कुलदेवी सांगियाजी की मगध के राजा जरासंध पर विजय का सूचक है।सांगियाजी का अर्थ है ,स्वांगी अर्थात भाला या सांग रखने वाली या ग्रहण करने वाली ।कहते हैकि श्री कृष्ण के समय में मगध नरेश जरासन्धके पास यह भाला था जो उसे देवताओं से प्राप्त हुआ था और जिसका प्रभाव था कि जब तक यह भाला उनके पास होता ,तब तकवह अजेय थे और कोई भी इस भाले के बार से नहीं बच सकता था।जिस किसी की ओर यह भाला लगाया जाता वह निश्चित मर जाता ।श्री कृष्ण जी ने कालिका देवी से प्रार्थना करके यह भाला राजा जरासंध से छिन वाया ।देवी ने राजा जरासंध से युद्ध करके यादवों के लिए यह भाला छीन लिया।उसकी छीना -झपटी में भाले काएक सिरा टूट गया ,इसी लिए राज्य चिन्ह में टूटा हुआ भाला दर्शाया गया है।
खंजन पक्षी ,जिसे सुगन चिड़ी भी कहते है,देवी सांगियाजी की प्रतीक है। कहते है कि ये खंजन पक्षी महारावल बिजैराज के सिर पर आ बैठी थी ।वास्तव में ये पक्षी न था इनकी कुलदेवी स्वागिया देवी थी।कुछ तथ्य ये भी बताते है कि देवी के वरदान से यह चिड़िया महारावल बिजेराव "चुडाला " के घोड़े की कन्नौती के बीच में बैठती थी और अपनी अद्रश्य तलवारों से युद्ध में उनका साथ देती थी।इससे रावल की जीत रही।
राज्य चिन्ह में ढाल केनीचे "छत्राला यादवपति "लिखा हुआ है और उस ढाल के नीचे "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी "अंकित है जिसका अर्थ यह है कि "भाटी उत्तर भारत के द्वार रक्षक है "अर्थात इन्होंने समय -समय पर भारत पर उत्तर से आक्रमण करने वालों का सबसे पहले मुकाबला किया है।यहां के नरेश पंजाब से राजपूताने में आने के कारण अपने को "पश्चिम के बादशाह "भी कहते है।
जब कुण्डलपुर के राजा भीष्मक की राजकुमारी रुक्मणी जी के स्वयंवर में श्री कृष्ण जी गये हुए थे ,तब देवराज इंद्र ने उनके लिए स्वर्ग से लवाजमा भेजा था ,जिसमें "मेघाडम्बर छत्र भी था।स्वयंमवर के बाद उन्होंने सारा लवाजमा तो स्वर्ग लौटा दिया ,किन्तु मेघाडम्बर छत्र नहीं लौटाया।इसे अपने और अपने यदुवंशी वंशजों के लिए प्रतीक स्वरूप रख लिया ।इस छत्र के कारण यदुवंशी ,छत्राला "कहलाये।राजतिलक के समय जैसलमेर के नरेश सोने -चांदी के छत्र चारणों को दान में देते है।जैसलमेर के भाटी यादवों में पद में सबसे वरिष्ठ होने के कारण ,"यादवपति "कहलाते है।इस लिए "छत्राला यादवपति "की उपाधि से सम्मानित है।महारावल बिजयराव लाँझा के अन्हिलवाड़ पाटन में विवाहोत्सव में उपस्थित पश्चिमी और उत्तरी भारत के राजाओं ने भाटी राजपूतों को उत्तर और उत्तर -पश्चिम से मुसलमानों के आक्रमणों को रोकने का दायित्व सौंपा और उन्हें "उत्तर भड़किवाड़ भाटी "के सम्बोधन से सुशोभित किया ।भाटी राजपूत प्रायः राजस्थान ,पंजाब ,हरियाणा ,हिमाचलप्रदेश ,गुजरात , उत्तरप्रदेश ,तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते है । राजस्थान ––––बाड़मेर ,जोधपुर ,चित्तोड़ ,बीकानेर ,गंगानगर ,जिलों में पाये जाते है l
हिमाचल प्रदेश
ढाल का रंग नारंगी है,लेकिन उस पर किले की बुर्ज जो काले रंग की है वे जैसलमेर किले को सूचित करती है और इस राज्य चिन्ह पर भाले के निशान् से इस वंश की कुल देवी स्वांगीयाजी सूचित होती है।भाले का निशांन ,कुलदेवी सांगियाजी की मगध के राजा जरासंध पर विजय का सूचक है।सांगियाजी का अर्थ है ,स्वांगी अर्थात भाला या सांग रखने वाली या ग्रहण करने वाली ।कहते हैकि श्री कृष्ण के समय में मगध नरेश जरासन्धके पास यह भाला था जो उसे देवताओं से प्राप्त हुआ था और जिसका प्रभाव था कि जब तक यह भाला उनके पास होता ,तब तकवह अजेय थे और कोई भी इस भाले के बार से नहीं बच सकता था।जिस किसी की ओर यह भाला लगाया जाता वह निश्चित मर जाता ।श्री कृष्ण जी ने कालिका देवी से प्रार्थना करके यह भाला राजा जरासंध से छिन वाया ।देवी ने राजा जरासंध से युद्ध करके यादवों के लिए यह भाला छीन लिया।उसकी छीना -झपटी में भाले काएक सिरा टूट गया ,इसी लिए राज्य चिन्ह में टूटा हुआ भाला दर्शाया गया है।
खंजन पक्षी ,जिसे सुगन चिड़ी भी कहते है,देवी सांगियाजी की प्रतीक है। कहते है कि ये खंजन पक्षी महारावल बिजैराज के सिर पर आ बैठी थी ।वास्तव में ये पक्षी न था इनकी कुलदेवी स्वागिया देवी थी।कुछ तथ्य ये भी बताते है कि देवी के वरदान से यह चिड़िया महारावल बिजेराव "चुडाला " के घोड़े की कन्नौती के बीच में बैठती थी और अपनी अद्रश्य तलवारों से युद्ध में उनका साथ देती थी।इससे रावल की जीत रही।
राज्य चिन्ह में ढाल केनीचे "छत्राला यादवपति "लिखा हुआ है और उस ढाल के नीचे "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी "अंकित है जिसका अर्थ यह है कि "भाटी उत्तर भारत के द्वार रक्षक है "अर्थात इन्होंने समय -समय पर भारत पर उत्तर से आक्रमण करने वालों का सबसे पहले मुकाबला किया है।यहां के नरेश पंजाब से राजपूताने में आने के कारण अपने को "पश्चिम के बादशाह "भी कहते है।
जब कुण्डलपुर के राजा भीष्मक की राजकुमारी रुक्मणी जी के स्वयंवर में श्री कृष्ण जी गये हुए थे ,तब देवराज इंद्र ने उनके लिए स्वर्ग से लवाजमा भेजा था ,जिसमें "मेघाडम्बर छत्र भी था।स्वयंमवर के बाद उन्होंने सारा लवाजमा तो स्वर्ग लौटा दिया ,किन्तु मेघाडम्बर छत्र नहीं लौटाया।इसे अपने और अपने यदुवंशी वंशजों के लिए प्रतीक स्वरूप रख लिया ।इस छत्र के कारण यदुवंशी ,छत्राला "कहलाये।राजतिलक के समय जैसलमेर के नरेश सोने -चांदी के छत्र चारणों को दान में देते है।जैसलमेर के भाटी यादवों में पद में सबसे वरिष्ठ होने के कारण ,"यादवपति "कहलाते है।इस लिए "छत्राला यादवपति "की उपाधि से सम्मानित है।महारावल बिजयराव लाँझा के अन्हिलवाड़ पाटन में विवाहोत्सव में उपस्थित पश्चिमी और उत्तरी भारत के राजाओं ने भाटी राजपूतों को उत्तर और उत्तर -पश्चिम से मुसलमानों के आक्रमणों को रोकने का दायित्व सौंपा और उन्हें "उत्तर भड़किवाड़ भाटी "के सम्बोधन से सुशोभित किया ।भाटी राजपूत प्रायः राजस्थान ,पंजाब ,हरियाणा ,हिमाचलप्रदेश ,गुजरात , उत्तरप्रदेश ,तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते है । राजस्थान ––––बाड़मेर ,जोधपुर ,चित्तोड़ ,बीकानेर ,गंगानगर ,जिलों में पाये जाते है l
हिमाचल प्रदेश
-------- जुब्बल ,बालसन ,थियोगर ,कलसी में भी भाटी वंशी राजपूत बसे है।
बिहार --मूंगेर ,भागलपुर जिलों में भी यदुवंशी भाटी राजपूत पाये जाते है।
उत्तरप्रदेश -गाजियावाद ,गौतमबुद्धनगर ,बुलहंदशहर ,ककराला (बदायूं)'यहियापुर (प्रतापगढ़),भरगैं (एटा)
पंजाब में –––––– भटिंडा ,नाभा ,जींद ,पटियाला ,अंबाला ,सिरमौर तक की यह पेटी भाटी वंश से ही है।
गुजरात --कच्छ और जामनगर में भी भाटी राजपूत पाये जाते है जो सन् 1800 के आस पास ईडर 'जोधपुर से माइग्रेट हुये थे । जय हिन्द।जय यदुवंश।जय श्री कृष्णा ।
लेखक --डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
बिहार --मूंगेर ,भागलपुर जिलों में भी यदुवंशी भाटी राजपूत पाये जाते है।
उत्तरप्रदेश -गाजियावाद ,गौतमबुद्धनगर ,बुलहंदशहर ,ककराला (बदायूं)'यहियापुर (प्रतापगढ़),भरगैं (एटा)
पंजाब में –––––– भटिंडा ,नाभा ,जींद ,पटियाला ,अंबाला ,सिरमौर तक की यह पेटी भाटी वंश से ही है।
गुजरात --कच्छ और जामनगर में भी भाटी राजपूत पाये जाते है जो सन् 1800 के आस पास ईडर 'जोधपुर से माइग्रेट हुये थे । जय हिन्द।जय यदुवंश।जय श्री कृष्णा ।
लेखक --डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला-हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।
Published by- "Yaduvanshi Kunwar Abhay Pratap Singh Jadon"
Sir
ReplyDeleteMuje bhatirajput me Sinha surname ka itihas Janna hai
Pls helo
Nathi hai or Akbar ki santan hai yeh bhati.
Delete100 chutiye marte he tab tumhare jaise janm lete he...abe gandu bharat pehle afganistan tak tha sale...1947 me paksitan alag hua je...gandu bewakuf...dusri bat kandar duryodhan ki ma ka desh he gandhari ke nam pe hi uska nam kandhar para he...or pakistan se bahart me kaise koi ghus gaya bey pehle to pakitan tha hi nahi...abe kon sa site se bakwas padh ke ajata he...tere jaise gandu hi hmlogo ke itihas bigad rahe he sale kuch se kuch net pe dal ke...khud ke khand ka kaha sasan tha salo tumlogo ko pata nahi je jiska tha salo tum uske oehcha pe khud ka nam karna chahte ho...bap dada bhais charaye or beta chatriya kehlaye 😂 abe chatriya ka vansh badlta he malum bhi...agar ajj ke yadav asali ya7dvshi hote or bharat pe raj karte to pata kar le bharat pe jitne bhi yaduvshi sasak he sbke vansh ke nam or raja ke nam me dekh le...singh thakur pal jamidar sabi yaduvshi he magar ahir gop yadav me nahi bante he
DeleteAur tumlog wo ho jiska raj riyast kuch bhi nahi tha isliye tumlog ka vansh hi nahi badla kabi sasak rahoge tab na...dwpar me bhi gai charate the bad me charate ho bas yadav likhna suru kar diya...jabki yadav chat4iya raja the or chatriya yadav ka vansh badlta rehthe he...chandravshi som vanshi yayati yaddu vhsi vrishni krihsna pal bhati jadav jadeja.chudasma
..samjh me aya kya...jiska sasan hi nahi he raja hi nahi bana koi to vansh tera balde ga kaha se...yadav likhme se yadav nahi ho jate...tere bap dada tere khandan ki galti he jo ahir yadav ko ek bana diya or krihsn ka piche para he...jabki krihsn ka yaduvsh alag he gop gwal ka alag vansh he ek vansh raj karne wala he ek gai charane wala ...or aj ke date me raj karne wala ko tumlog yadav bolte ho 😂 mahbahart ke bad se yaduvsh nahi badla...😂 sasak hoga tab na nakli ka koi...tere khand ke kon se purwaj ne kaha sasan kiya ye jara bataoge...ki dusro ke itihas pe bhakar bhakar karoge...khud ka pata nahi he or salo hme bata rahe ho hm kaun he...
इतनी सुंदर और ऐतिहासिक जानकारी के हृदय से आभार व धन्यवाद
ReplyDeleteजय यदुवंश
Ye yadavo ka nhi Rajput yaduwanshi bhati ka itihas h bhai ... Or yadav Ik samuh h jisme alag alag caste ke jude hue h or ise baadme caste me badal diya gya ..
Deleteye yadav title ahir kyu lgane lge????
ReplyDeleteSonu Singh chauhan kyoki tum chutiya ho isliye abe murkh ahir matlab sastro me nidar aur veer bataya gaya hai ahir sir yaduwanshi o ka ek clain hai upjati jaime bahut se gotra hai
DeleteGandu ho aaz army me hr cast ka aadmi h vo kya desh ke liye ldta nhi h jyada grmi mt dikha asli yadav ahir h sale banjare kb se yaduvanshi ho gaye
DeleteGaurav
DeleteChutiye tuje pata he krishn ji jis ke ghar me paida hue the aur kaha par bade hue
Aur na. Pata ho to itihaas padh liyo
And for your kind information
We are know as vedic kshatriya so
Plss put your understanding out away
Very good abhay Bhai
ReplyDeleteFb pr aa jaao Bhai vapis
Great sir
ReplyDeleteBhati
ReplyDeleteThe burners will remain burning jay yadav jay mazhab
ReplyDeleteभाटी वश
ReplyDeleteAre bhai hmare yha to jo gwala hote hai wo bhu yadav likhte hai..to bhati rajput the ya gwala
ReplyDeleteअहीर इतिहास चोर है इनका काम ही क्षत्रिय राजपूत का इतिहास चोरना है 1910 के बाद क्षत्रिय राजपूत का यादव टाइटल चुराया था इन लोगो को यदुवंश के दूर दूर तक कोई लेना देना नही है ये लोग गोकुल के चरवाहे है जो की नन्दबाबा की गैया चराते थे
DeleteAbe sale ahir bhi yadav hote hai tuje bada pata hai dosro ke baap ko apna baap banate ho 🤣😂. Bhati bhi yadav hai yaduvanshi rajput, yaduvanshi ahir bahi hai
DeleteThanks ...hukum..
ReplyDeleteJason's are banjare hai.they are not yadav.google per sarch kar key dekh lo.yeh Ahiro ke kadam gotra ki nakal. Karke apne aap ko yadav kahate hai.Actually they are banjare.only yadav's ahirs are dabang yadav.
ReplyDelete100 chutiye mare the tab tun aya abe danabng chudra tera bap he bhati jadon jadeja yaduvshi sasak he jusne bharat pe raj kiya he ...ahir gop ajj jiske itihas pe fudkate he wo hamara itihas he sale...or beta tu jis banzaro ki bat kar raha he wo dusre banzare he or wo jaaun nahi jadan he....sale singh sardar bhi likhte he bey to tu rsjputo ko panjabi bana dega...gwar gwar hi rahega tbi sala tumhare jaisa gandu bahart pe sasan karega 😂 chatriya ka vansh kaise badlta he janta he ?? Wo sab to malum nahi hoga bs yadav likhna suru kar diya...bhaklog chatriyo me raja ke nam pe vansh banta he jat nahi banti kabi isliye tumlog ki chori pakri jati he kyuki mahbahart ke bad se salo yaduvshi ke bahut se sasak raj kiye he or vansh bhi badal gaya he jaise cahndra vahsi som vanshi yadu vanshi badle the waise hi jis yadav chatriya ka raj tha surf uska vans badlata gaya or tumlog ka nahi badla...jo ye bat sabit karta he mabharat ke bad tumlogo ke ne kahi sasan nahi kiya...matlab tum wo yadav ho hi nahi😂 jabki yaduvshi jitne bhi sasak he sabke apne apne vansh he jaise pal vash nepal ke bhati vansh jaislemar ke or ham bhati ke sakha he bhatiyo se alag hokar jadav/jdon jdeja chudasama bane he...ye bat bhati mahraja bhi bata denge...or tu jis banzara ka itihas dekh raha he wo sb abi bhi he wo hmare wale jadaun nahi he bey gandu...sardar panjabi bhi singh lagta he nam me to hindu singho ko sardar bol dega kya...bal katne wala laua bhu thakur lagta he to usko jamkndar bol doge kya...kahin se bhi lagta he tumhare budhhi wale sasan kiye honge...ek to yadav churya khud ko chatriya bolte ho or ajtak tumhra vansh nahi badla jo ki chatriyo m3 hmaesa badlti he ...chahe to krishn ke purwaj dekh le or bharat ke sasak ke dekh le....jadon banzara😂 beta kiska bat kisse jor raha he
Deleteबहुत ही सुंदर है
ReplyDeleteyour a rajput tribe from pakistan..bhati maveshi chori aur shikarke shoukin hote the ..kahan se krishna ke vanshaz ho gaye..bhati gujaro main jaat main bhi payi jaate hain kitni chori karoge..
ReplyDeleteWhatsApp no. 7375094898 msg ker reason batata hun
Delete100 chutiye marte he tab tumhare jaise janm lete he...abe gandu bharat pehle afganistan tak tha sale...1947 me paksitan alag hua je...gandu bewakuf...dusri bat kandar duryodhan ki ma ka desh he gandhari ke nam pe hi uska nam kandhar para he...or pakistan se bahart me kaise koi ghus gaya bey pehle to pakitan tha hi nahi...abe kon sa site se bakwas padh ke ajata he...tere jaise gandu hi hmlogo ke itihas bigad rahe he sale kuch se kuch net pe dal ke...khud ke khand ka kaha sasan tha salo tumlogo ko pata nahi je jiska tha salo tum uske oehcha pe khud ka nam karna chahte ho...bap dada bhais charaye or beta chatriya kehlaye 😂 abe chatriya ka vansh badlta he malum bhi...agar ajj ke yadav asali ya7dvshi hote or bharat pe raj karte to pata kar le bharat pe jitne bhi yaduvshi sasak he sbke vansh ke nam or raja ke nam me dekh le...singh thakur pal jamidar sabi yaduvshi he magar ahir gop yadav me nahi bante he
DeleteAur tumlog wo ho jiska raj riyast kuch bhi nahi tha isliye tumlog ka vansh hi nahi badla kabi sasak rahoge tab na...dwpar me bhi gai charate the bad me charate ho bas yadav likhna suru kar diya...jabki yadav chat4iya raja the or chatriya yadav ka vansh badlta rehthe he...chandravshi som vanshi yayati yaddu vhsi vrishni krihsna pal bhati jadav jadeja.chudasma
..samjh me aya kya...jiska sasan hi nahi he raja hi nahi bana koi to vansh tera balde ga kaha se...yadav likhme se yadav nahi ho jate...tere bap dada tere khandan ki galti he jo ahir yadav ko ek bana diya or krihsn ka piche para he...jabki krihsn ka yaduvsh alag he gop gwal ka alag vansh he ek vansh raj karne wala he ek gai charane wala ...or aj ke date me raj karne wala ko tumlog yadav bolte ho 😂 mahbahart ke bad se yaduvsh nahi badla...😂 sasak hoga tab na nakli ka koi...tere khand ke kon se purwaj ne kaha sasan kiya ye jara bataoge...ki dusro ke itihas pe bhakar bhakar karoge...khud ka pata nahi he or salo hme bata rahe ho hm kaun he...
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ReplyDeleteNice
ReplyDeleteमुगल शासन काल में चुराके सब रख लिए होंगे सबूत के तौर पर गेम रियाल यदुवंशी है
ReplyDeleteTum ahire apni maa chudwane kyu aate ho bai 🤣🤣🤣 khudh kai Kai tihas oe name pai laura hai
Deleteजय यदुवंशी भाटी राजवंश
ReplyDeleteWestern rajasthan mai bhati ka dusra naam hi paadi chor hai.jakar barmer jodhpur ke logo se puchna.bhati bakri,gaya,bhed,bhais,churate the.
ReplyDeleteChodo pahli baat aur akhri koi vedo aur purano me bhati ka ulakh nahi khud ke muu se sab yaduvanshi ban sakte hai aur haa jo bhagwan krishna ji ka chatr hai vo pura nakli uska bhi pushti nahi hai 🙏🙏🤣 aur vo sirf tumre dwara bhram faliyaa hua hai 🤣🤣. Rajwado se koi yaduvanshi nahi banjataa varnaa mugal toh bhagwan ram ke vansj hote 🤣🤣. Rewari Haryana ki riysat bhagwan ki hai 🙏 vo hai asli aur kuch murk unhe bhi jadon me se nikala hua batate hai🤣🤣
DeleteJai rajputana jai hind
ReplyDeleteBhatti rajput
छत्राला यादव पति महारावल बृजराजसिंह का असमय निधन हिंदुत्व व देश के लिए अपूरणीय क्षति है। आपके इस लेख में यदुवंशी भाटी साम्राज्य के बारे अति महत्वपूर्ण जानकारी मिली जो कि किताबो में पढ़ाई नही जा रही।
ReplyDeleteआप संकलन व प्रकाशन जारी रखे ऐसी प्रार्थना।
Jai rajputana
ReplyDeleteमुझे रावलोत भाटीयों के इतिहास के बारे मे जानकारी चाहिए हुक्म आपके पास हो तो मुझे वाट्सप पर मेसेज करे 9079672882 कुंवर भवानी प्रताप सिंह रावलोत भाटी ठिकाणा-जालोङा फलोदी जोधपुर (राजस्थान)
ReplyDeleteSir plz tell me about what is bhati gautra
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी दी सा जय माताजी सा 🙏
ReplyDeleteSir muje San 1800 mai Jaisalmer se punjab mai aye jawala singh bhati ka itihaas jaan na hai
ReplyDeleteसम्पूर्ण जानकारी का तो में नही कह सकता
ReplyDeleteलेकिन स्वांगिया जी (देवी आवड़ ) को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है देवी आवड़ को सातो बहनों एवम भाई मेहरख के साथ पूजा जाता है